सूर्य ग्रहण उस समय होता है जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच में इस तरह से आ जाता है कि वह सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुंचने में बाधा डालता है। यह केवल उस समय हो सकता है जब चंद्रमा के केंद्र, सूर्य और पृथ्वी लगभग सीधी रेखा में हैं। उस समय सूर्य और चंद्रमा के देशांतर समान होते हैं। जैसा कि चंद्र ग्रहण में पहले ही समझाया जा चुका है कि पृथ्वी और सूर्य हमेशा अण्डाकार पर रहते हैं, जबकि चंद्रमा का रोहित एक गैल पर होता है। लगभग 5° का अण्डाकार होगा। इसलिए चंद्रमा हमेशा अण्डाकार पर नहीं होता है। यह ग्रहण पर होता है जब यह राहु और केतु के साथ मेल खाता है जो चंद्रमा के नोड हैं।
इसलिए, सूर्य ग्रहण के लिए दो आवश्यक शर्तें हैं और वही हैं: -
1. चंद्रमा राहु या केतु में या उसके पास होना चाहिए।
2. उस समय अमावस्या समाप्त होनी चाहिए।
4 दिसंबर 2021 को 10 बजकर 59 मिनट पर मार्गशीर्ष मास, कृष्ण पक्ष अमावस्या, ज्येष्ठा नक्षत्र और वृश्चिक राशि का सूर्य ग्रहण शनिवार को लगेगा. यह सूर्य ग्रहण भारत में नहीं दिखेगा।यह ग्रहण खण्डग्रास के रुप मे अंटार्कटिकाअंटार्कटिका पृथ्वी का दक्षिणतम महाद्वीप, जिससे दक्षिणी ध्रुव है। के कुछ भाग दक्षिण अफ्रीका एवं दक्षिण अटलांटिक महासागर दिखाई देगा। यह केवल अंटार्कटिका में खग्रास के रूप में दिखाई देगा।खग्रास सूर्य ग्रहण का प्रारंभ 10-59:27 मकर राशि लग्न में शनि स्थितहैं।वृश्चिकराशि मे ग्रहण का प्रारंभ 10:59:28 राहु वृषभ राशि वृश्चिक राशि सूर्य-चंद्रमा-बुध-केतु तीन ग्रह ज्येष्ठा नक्षत्र जिसका नक्षत्रपति बुध के पास है।केतु अनुराधा नक्षत्र में नक्षत्र पति शनि हैं।राहु सूर्य के नक्षत्र कृत्तिका में स्थितहै।ग्रहण का कुल समय है। 13 बजकर 54 मिनट हैं।राहु-केतु 180° पर स्थित हैं।मंगल की दृष्टि शनि के ऊपर है।
वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल ग्रह है।वृश्चिक राशि के स्वामी केतु व प्लूटो भी हैं।केतु भावनात्मक विस्फोटक व अनायास परिस्थिति परिवर्तन द्वारा होता है।वृश्चिक राशि बिच्छू की आकृति हैं।ज्येष्ठा नक्षत्र का निवास स्थान दुर्गम मार्ग,गुप्त प्रदेशों में रहने वाली,उत्तरदिशा का अधीश ,जलचर व थलचर,तीखे डंक,शनि ग्रह इस स्थान के कारक ग्रहहैं।मानसिक बीमारी,दीर्घायु,शोक,दोष,मृत्यु,सरकार के सजा,विदेशी यात्रा,पति के सम्बन्धित रिश्तों,हानि,विधवापन,पाप,दुर्घटना,पति के द्वारा समस्या,गुप्तसम्बंध, ओसीक्यूलत विज्ञान,डीग्रेडेशन,कर्जे,मूत्ररोग,कफात्मक सम्बंधित रोग ,चन्द्रमा की नीच राशि हैं,केतु की उच्च होते है।ज्येष्ठा नक्षत्रपति बुधग्रह हैं।यहाँपर अपने दोषों यथा छल-कपट,धोखा,दोषों के निराकरण व शुद्धिकरण होता हैं।उष्ण कटिबंध वन,सरकारीजमीन,भवन,दूर संचार,टीवी प्रसार केंद्र,समाचार पत्र मुद्रणालय,विमान का तल,सेना,महानगरों की राजधानी वाले नगर,वृद्धआश्रम को देख जा सकता है।सूर्य-चन्द्रमा नीच व अस्त अवस्था मे -बुध अस्त -केतु -राहु के दृष्टि और आकाश मण्डल में चार ग्रहो की युति दुर्भिक्ष,सत्ता परिवर्तन,रक्तपात,सम्प्रदायिक उपद्रव एवं भूकंप आदि के संकेत दे रही हैं।
चंद्र ग्रहण में दो ग्रहण और अन्य सूर्य सोलहवें दिन के दौरान होते हैं और राजा नष्ट हो जाते हैं।ग्रहण का अशुभ प्रभाव उन देशों में सक्रिय होता है जिन देशों में यह दृष्ट होता है। वृश्चिक एक स्थिर राशि होने पर इसका दुष्प्रभाव लम्बे समय तक रहेगा।वृश्चिक राशि में ग्रहण होने से उदुम्बर, मद्र और चोल देश के निवासियों, वृक्ष श्रेष्ठ योद्धा और विष देने वालो नाश होता है।